Baisakhi: A Major Festival of Hindu and Sikh Community
वैशाख माह में आने वाली बैसाखी सिखों, हिन्दुओं और बौद्ध के प्रमुख त्योहारों में से एक है। प्रतिवर्ष इस त्यौहार पर पकी हुई फसल की कटाई शुरू की जाती है। यह त्यौहार अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग रीति-रिवाजों से मनाया जाता है।
सौर मास का प्रथम दिन वैशाख होता है और इस दिन लोग गंगा नदी में स्नान करते है। बैसाखी के त्यौहार पर हरिद्वार और ऋषिकेश में भारी भीड़ होती है अर्थात मेला लगता है। बैसाखी वाले दिन हरिद्वार और ऋषिकेश में दूर-दूर से लोग आकर गंगा में स्नान करते है।
बैसाखी को विषुवत संक्रान्ति (Vishuvat Sankranti) के रूप में भी मनाया जाता है। परम्परागत रूप से यह पर्व प्रत्येक वर्ष अप्रैल के महीने में 13-14 तारीख को ही मनाया जाता है।
बैसाखी की मान्यताएं (Beliefs of Baisakhi)
13 अप्रैल 1699 के दिन सिखों के दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह (Shri Gobind Singh) जी ने बैसाखी त्यौहार के दौरान खालसा पंथ (Khalsa Panth) की स्थापना की। उसके बाद ही इस दिन को ज्यादा महत्व दिया गया और सिखों में इसी दिन नए साल की शुरुआत की जाती है।
इस त्यौहार को मेष संक्रांति (Mesh Sankranti) भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रविष्ट होता है।
भारत के पंजाब राज्य से बैसाखी के त्यौहार की शुरुआत हुई। इस त्यौहार को रबी की फसल की कटाई शुरू होने की सफलता के रूप में मनाया जाता है और इस दिन गेहूं, तिलहन, गन्ने आदि की फसल की कटाई शुरू होती है।
बैसाखी का महत्व (Importance of Baisakhi)
पंजाब के साथ-साथ हरियाणा और उत्तर भारत में भी बैसाखी का बहुत महत्व है। खासकर किसानों के लिए यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस दिन के बाद सर्दी पूरी तरह से खत्म हो जाती है और फसल कटने के बाद अनाज घर आ जाता है।
इस दिन लोग अनाज की पूजा करते है और पंजाब में पारम्परिक रूप से नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है, लोग इकट्ठे होकर नई फसल की खुशियाँ मनाते है, गुरुद्वारों में लोग इकट्ठे होकर अरदास करते है।
विशेष समारोह आनन्दपुर साहिब में किया जाता है क्योंकि वहीं पर पन्थ की नींव रखी गई।
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