वॉशिंगटन/मॉस्को, 24 अक्टूबर 2025 – अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सीधी चेतावनी देते हुए कहा है कि रूस की प्रमुख तेल कंपनियों पर लगाए गए नए प्रतिबंधों का असर “6 महीने में पता चल जाएगा।” यह बयान यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की ट्रंप की नाकाम कोशिशों के बीच आया है, जहां पुतिन ने इन प्रतिबंधों को “नगण्य” बताकर खारिज कर दिया। लेकिन ट्रंप का यह तीर सिर्फ रूस को निशाना बनाने का नहीं है – इसके जद में भारत भी है, जो रूस से सस्ते कच्चे तेल की सबसे बड़ी खरीदार है। क्या यह भारत-अमेरिका संबंधों में नया तनाव पैदा करेगा? आइए, पूरी कहानी को विस्तार से समझते हैं।
ट्रंप-पुतिन तनाव की पृष्ठभूमि: शांति से युद्धविराम की धमकी तक
ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही यूक्रेन युद्ध को “24 घंटे में खत्म करने” का दावा किया था। लेकिन पिछले 6 महीनों में यह वादा हवा में उड़ गया। अगस्त 2025 में अलास्का में ट्रंप और पुतिन की तीन घंटे लंबी बैठक बेनतीजा रही, जहां युद्धविराम पर कोई सहमति नहीं बनी। उसके बाद ट्रंप ने पुतिन को “गंभीर परिणामों” की धमकी दी, जिसमें रूस पर आर्थिक प्रतिबंध और उसके तेल निर्यात को चोट पहुंचाना शामिल था।
पिछले हफ्ते बुडापेस्ट में प्रस्तावित शिखर सम्मेलन रद्द हो गया, जब ट्रंप ने कहा कि यह “ट्रंप के इच्छित परिणाम” नहीं देगा। इसके जवाब में अमेरिका ने रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों – रोसनेफ्ट और लुकोइल – पर प्रतिबंध लगा दिए, जो वैश्विक तेल उत्पादन का 5% से अधिक हैं। इन प्रतिबंधों का लक्ष्य रूस की युद्ध अर्थव्यवस्था को कमजोर करना है, क्योंकि तेल निर्यात मॉस्को के बजट का एक-चौथाई हिस्सा है।
ट्रंप ने गुरुवार को पत्रकारों से कहा, “मैं खुश हूं कि पुतिन को लगता है कि इसका असर नहीं होगा। अच्छा है। लेकिन 6 महीने बाद मैं आपको बता दूंगा।” यह बयान ट्रंप के पहले के वादों – जैसे 50 दिनों में शांति – की याद दिलाता है, जो टूट चुके हैं। पुतिन ने जवाब में कहा कि रूस “कभी दबाव में नहीं झुकेगा” और प्रतिबंधों का आर्थिक प्रभाव “नगण्य” रहेगा। रूसी अर्थव्यवस्था पहले ही 21% कम राजस्व झेल रही है, लेकिन मॉस्को का मुख्य राजस्व उत्पादन कर से आता है, न कि निर्यात से।
ट्रंप का रुख बदलता रहा है। पहले उन्होंने पुतिन की तारीफ की, लेकिन अब गुस्से में कहते हैं कि उनके “अच्छे संबंध” पुतिन के “सही काम” पर निर्भर हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप यूक्रेन को “न्यायपूर्ण शांति” चाहते हैं, लेकिन यूरोपीय संघ और यूक्रेन सुरक्षा गारंटी पर अड़े हैं।
भारत पर क्यों पड़ेगा असर? तेल खरीदारी और सेकेंडरी टैरिफ का जाल
भारत रूस से कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार है – 2025 के पहले नौ महीनों में 1.9 मिलियन बैरल प्रतिदिन (रूस के कुल निर्यात का 40%)। युद्ध शुरू होने के बाद रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया, जो 35% आयात का हिस्सा है। लेकिन ट्रंप इसे “रूस को फंडिंग” मानते हैं।
ट्रंप ने पहले ही भारत पर “सेकेंडरी टैरिफ” थोप दिए हैं – रूसी तेल/हथियार खरीदने पर 25% अतिरिक्त जुर्माना, जो मौजूदा 25% टैरिफ के साथ कुल 50% हो जाता है। अगस्त में अलास्का बैठक के बाद अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने चेतावनी दी कि अगर ट्रंप-पुतिन वार्ता फेल हुई, तो भारत पर और टैरिफ लगेंगे। ट्रंप ने कहा कि ये टैरिफ रूस को “दूसरा सबसे बड़ा ग्राहक” खोने पर मजबूर कर देंगे।
भारत ने इसे “अनुचित” बताया और कहा कि अमेरिका खुद रूस से $3.5 अरब का व्यापार करता है। लेकिन रिफाइनरियों ने रूसी तेल की खरीद घटा दी है, जिससे तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। भारत-रूस व्यापार ऊर्जा से आगे बढ़ रहा है – कृषि, फार्मा और S-400 मिसाइल सौदे पर चर्चा चल रही है। दिसंबर में पुतिन की भारत यात्रा में रक्षा सहयोग पर फोकस होगा।
ट्रंप ने सितंबर में मोदी-शी-पुतिन की SCO बैठक पर तंज कसा, कहकर कि अमेरिका ने “भारत और रूस को चीन के हवाले कर दिया।” इससे भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता प्रभावित हो रही है, जहां निर्यात 37.5% गिर चुके हैं। IMF के अनुसार, भारत की GDP वृद्धि 6.6% रहने की उम्मीद है, लेकिन टैरिफ से जोखिम बढ़ा है।
| क्षेत्र | भारत पर संभावित प्रभाव | ट्रंप की धमकी का आधार |
|---|---|---|
| तेल आयात | कीमतें बढ़ेंगी, रिफाइनरी प्रभावित | रूस से 40% तेल खरीद पर 50% टैरिफ |
| व्यापार | US निर्यात में 37.5% गिरावट | सेकेंडरी टैरिफ से $100 अरब नुकसान |
| रक्षा | S-400 सौदे पर दबाव | हथियार खरीद पर अतिरिक्त जुर्माना |
| अर्थव्यवस्था | GDP पर 0.5-1% असर | वैश्विक तेल बाजार में उथल-पुथल |
विशेषज्ञों की राय: क्या बदलेगा वैश्विक समीकरण?
- ट्रंप का दांव: विशेषज्ञ कहते हैं कि ट्रंप पुतिन को “लिवर” ढूंढ रहे हैं – भारत जैसे खरीदारों को निशाना बनाकर। लेकिन यह यूरोपीय संघ को नाराज कर सकता है, जो रूसी ऊर्जा पर 90% कम निर्भर हो चुका है।
- भारत की रणनीति: नई दिल्ली रूस से दोस्ती नहीं छोड़ेगी। पीएम मोदी ने कहा कि भारत “सभी पक्षों से बात करेगा।” लेकिन अमेरिका के साथ व्यापार सौदा लटका है।
- पुतिन का जवाब: रूस यूक्रेन में कुर्स्क पर कब्जा मजबूत कर रहा है। टॉमहॉक मिसाइलों पर पुतिन ने “रेड लाइन” पार करने की धमकी दी।
आगे क्या? 6 महीने का इंतजार या नया संकट?
ट्रंप का “6 महीने” वाला बयान एक चुनौती है – या फिर खोखला दावा। अगर प्रतिबंध काम करते हैं, तो रूस की अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है, लेकिन भारत को महंगाई का सामना करना पड़ेगा। अगर नहीं, तो ट्रंप की साख पर सवाल उठेंगे। भारत के लिए सवाल वही है: रूस से सस्ता तेल जारी रखें या अमेरिका से व्यापार बचाएं? दिसंबर में पुतिन की भारत यात्रा इस त्रिकोण को नया मोड़ दे सकती है। दुनिया देख रही है – क्या ट्रंप का “दादागिरी” कामयाब होगा, या यह युद्ध को लंबा खींच देगा?
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