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aravali hills

अरावली की चीख: 100 मीटर से नीचे सब कुछ खनन के हवाले?

अरावली पर्वतमाला दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जो दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से गुजरती है। यह उत्तर भारत के लिए एक प्राकृतिक कवच की तरह काम करती है – थार मरुस्थल की रेत को पूर्व की ओर फैलने से रोकती है, भूजल रिचार्ज करती है, जैव विविधता को संरक्षित रखती है और दिल्ली-एनसीआर में धूल भरी आंधियों को कम करती है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में अवैध खनन, शहरीकरण और अतिक्रमण से यह काफी क्षतिग्रस्त हो चुकी है।

सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला (20 नवंबर 2025) लंबे समय से चल रहे अवैध खनन के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय की अगुवाई वाली समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया। नई परिभाषा के अनुसार:

  • अरावली पहाड़ी: कोई भू-आकृति जो आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंची हो।
  • अरावली रेंज: ऐसी दो या अधिक पहाड़ियां जो एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में हों। इसके साथ ही, कोर्ट ने पूरे अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टों पर रोक लगा दी है, जब तक कि भारतीय वन अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) द्वारा टिकाऊ खनन की व्यापक योजना तैयार न हो जाए। मौजूदा वैध खदानें सख्त पर्यावरण नियमों के साथ चल सकती हैं।

लोगों और पर्यावरणविदों के मुख्य डर फैसले के बाद #SaveAravalli हैशटैग सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है और राजस्थान, हरियाणा में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। मुख्य चिंताएं:

  • फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में चिन्हित 12,000 से अधिक पहाड़ियों में से केवल 8-9% ही 100 मीटर से ऊंची हैं। बाकी 90% से अधिक हिस्सा अब “अरावली” की कानूनी परिभाषा से बाहर हो सकता है।
  • इससे कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां (जो झाड़ियों से ढकी हैं और इकोसिस्टम का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं) खनन, रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए खुल सकती हैं।
  • परिणाम:
    • थार मरुस्थल का तेजी से फैलाव (रेगिस्तान化 बढ़ेगा)।
    • भूजल स्तर तेजी से गिरेगा, एक्विफर दूषित होंगे।
    • दिल्ली-एनसीआर में धूल भरी आंधियां और प्रदूषण बढ़ेगा।
    • जैव विविधता नष्ट होगी, वन्यजीवों (तेंदुआ, लंगूर आदि) के आवास कम होंगे। कई विशेषज्ञ इसे “अरावली का डेथ वारंट” बता रहे हैं, क्योंकि छोटी पहाड़ियां भी पारिस्थितिकी में बड़ी भूमिका निभाती हैं।

सरकार का पक्ष केंद्र सरकार और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने स्पष्ट किया कि:

  • नई परिभाषा से अरावली के 90% से अधिक क्षेत्र की सुरक्षा मजबूत हुई है।
  • केवल 0.19% क्षेत्र में ही सीमित खनन संभव है, वो भी सख्त शर्तों के साथ।
  • नए खनन पट्टों पर पूर्ण रोक है।
  • यह परिभाषा अस्पष्टता दूर करने और अवैध खनन रोकने के लिए है।

विरोध और आगे की राह राजस्थान में पूर्व सीएम अशोक गहलोत, कांग्रेस नेता और स्थानीय लोग विरोध में उतरे हैं। गुरुग्राम, उदयपुर आदि में प्रदर्शन हुए। कुछ ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले की समीक्षा की मांग की है। सरकार ने कहा कि ICFRE जल्द ही जिला-स्तरीय संरक्षण योजना बनाएगी।

खनन से पहले का नुकसान

पहले से ही अवैध खनन से कई पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं।

यह विवाद पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच संतुलन का सवाल उठाता है। आने वाले समय में संरक्षण योजना कितनी प्रभावी होगी, यही तय करेगा अरावली का भविष्य।

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