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Pressure on the Rupee: Why did the RBI sell $11.88 billion, and yet why is the decline not stopping?

रुपये पर दबाव: RBI ने क्यों बेचे 11.88 अरब डॉलर, फिर भी क्यों नहीं रुक रहा गिरावट का सिलसिला?

23 दिसंबर 2025 तक भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार दबाव में है। हाल ही में यह 91.075 के रिकॉर्ड निचले स्तर तक गिरा था, लेकिन RBI की आक्रामक हस्तक्षेप से यह 89.65 के आसपास रिकवर कर चुका है। खबर का मुख्य बिंदु RBI के अक्टूबर 2025 में नेट 11.88 अरब डॉलर की बिक्री है, जो रुपये को बचाने के लिए की गई थी। RBI ने कुल 29.56 अरब डॉलर बेचे और 17.69 अरब डॉलर खरीदे, जिससे नेट बिक्री 11.88 अरब रही। यह आंकड़ा RBI के दिसंबर बुलेटिन में जारी किया गया।

यह हस्तक्षेप अक्टूबर में रुपये को 88.80 के पिछले रिकॉर्ड लो से आगे गिरने से रोकने के लिए था। उस महीने रुपया 88.7650 पर बंद हुआ। लेकिन दिसंबर में दबाव फिर बढ़ गया, और रुपया 91 तक गिरा। RBI ने मिड-दिसंबर में फिर आक्रामक तरीके से डॉलर बेचकर रुपये को रिकवर कराया – एक हफ्ते में 2% तक की मजबूती आई।

दबाव क्यों नहीं रुक रहा? मुख्य कारण

2025 में रुपया अब तक 6% से ज्यादा कमजोर हो चुका है, जो एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक है। RBI की भारी बिक्री के बावजूद दबाव जारी रहने के प्रमुख कारण:

RBI की हस्तक्षेप रणनीति: वोलेटिलिटी कंट्रोल, न कि फिक्स्ड डिफेंस

  • RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा की नीति: रुपया बाजार बलों से अपना स्तर तय करता है, लेकिन अत्यधिक वोलेटिलिटी या स्पेकुलेटिव अटैक पर जोरदार जवाब।
  • अक्टूबर में: 88.80 लेवल को डिफेंड करने के लिए लगातार डॉलर सप्लाई।
  • दिसंबर में: शुरुआत में लाइट इंटरवेंशन (रुपये को 91 तक गिरने दिया), लेकिन 5 दिन की लगातार गिरावट के बाद आक्रामक सेलिंग – स्टेट-रन बैंक के जरिए डॉलर बेचे, जिससे स्पेकुलेटिव पोजीशंस कटे।
  • कुल अनुमान: जून-अक्टूबर में ~30 अरब डॉलर इंटरवेंशन; दिसंबर में अतिरिक्त भारी सेलिंग।
  • नतीजा: रुपये की वोलेटिलिटी एशियन पीयर्स से कम रही, लेकिन डेप्रिशिएशन जारी।

दबाव क्यों नहीं रुक रहा? मुख्य कारणों का गहन विश्लेषण

  1. रिकॉर्ड FPI आउटफ्लो: 2025 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय इक्विटी से 18 अरब डॉलर (लगभग 1.55 लाख करोड़ रुपये) से ज्यादा निकाले। यह रिकॉर्ड है। दिसंबर में भी आउटफ्लो जारी – रुपये की कमजोरी और ट्रेड अनिश्चितता से निवेशक डॉलर की ओर भागे। इससे डॉलर डिमांड बढ़ी, रुपया दबाव में।
  2. भारत-अमेरिका व्यापार गतिरोध और 50% टैरिफ:
    • अमेरिका ने 2025 में भारतीय निर्यात पर 50% तक टैरिफ लगाया (राष्ट्रीय सुरक्षा और अनफेयर ट्रेड के नाम पर)।
    • बातचीत पूरे साल चली, लेकिन दिसंबर तक कोई डील नहीं। भारतीय चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर ने कहा – डील मार्च 2026 तक संभव।
    • प्रभाव: निर्यात महंगा, व्यापार घाटा बढ़ा (अक्टूबर में रिकॉर्ड हाई)। निवेशकों का भरोसा डगमगाया, इक्विटी मार्केट लैगिंग (Nifty सिर्फ 10% ऊपर vs एमर्जिंग मार्केट्स 26%)।
    • रुपये पर सबसे बड़ा प्रेशर इसी से – कोई दूसरी मुद्रा इतनी प्रभावित नहीं।
  3. ग्लोबल स्ट्रॉन्ग डॉलर और अनिश्चितता:
    • अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूत, डॉलर इंडेक्स ~98-99 पर।
    • भू-राजनीतिक तनाव, ट्रेड वॉर आशंका से सेफ हेवन डॉलर डिमांड।
    • एशियन करेंसीज भी कमजोर, लेकिन रुपया सबसे खराब।
  4. डोमेस्टिक फैक्टर्स:
    • आयात बिल हाई (तेल, गोल्ड इंपोर्ट्स)।
    • कॉरपोरेट हेजिंग डिमांड बढ़ी।
    • ट्रेड डेफिसिट चौड़ा, CAD प्रेशर।
    • रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट (REER) अंडरवैल्यूड जोन में – निर्यात को मदद, लेकिन इंपोर्टेड इन्फ्लेशन रिस्क।

RBI की स्थिति और विदेशी मुद्रा भंडार

  • 12 दिसंबर 2025 तक भंडार 688.95 अरब डॉलर (हालिया डेटा) – मजबूत, 11 महीनों के आयात कवर।
  • गोल्ड रिजर्व्स ~107-108 अरब डॉलर, FCA ~558 अरब।
  • इंटरवेंशन से भंडार सितंबर पीक (703 अरब) से कम हुए, लेकिन अभी पर्याप्त।
  • RBI की क्षमता: बड़ा क्रैश रोक सकती है, लेकिन स्ट्रक्चरल प्रेशर (ट्रेड डील) तक डेप्रिशिएशन जारी रह सकता है।

भविष्य का अनुमान और प्रभाव

  • विश्लेषक: ट्रेड डील तक दबाव रहेगा। कुछ फोरकास्ट 92 तक गिरावट, लेकिन RBI से रेंज-बाउंड (89-91)।
  • पॉजिटिव: निर्यातकों को फायदा (सस्ता निर्यात, नवंबर में 19% जंप)।
  • नेगेटिव: आयात महंगा, इन्फ्लेशन रिस्क, इक्विटी मार्केट प्रेशर।
  • कुल मिलाकर, अक्टूबर की 11.88 अरब डॉलर बिक्री अस्थायी रक्षा थी, लेकिन दिसंबर का दबाव संरचनात्मक है। ट्रेड डील या आउटफ्लो रुकने पर रिकवरी संभव, अन्यथा RBI सतर्क रहेगी।

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