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पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच डूरंड लाइन पर बातचीत के बिना शांति की संभावनाएं: एक विस्तृत समाचार रिपोर्ट

नई दिल्ली/इस्लामाबाद, 20 अक्टूबर 2025: पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच डूरंड लाइन (Durand Line) का विवाद दशकों पुराना है, जो दोनों देशों के संबंधों में एक प्रमुख बाधा बना हुआ है। हाल ही में अक्टूबर 2025 में दोनों पक्षों के बीच सीमा पर हिंसक झड़पें हुईं, जिसके बाद कतर और तुर्की की मध्यस्थता में एक अस्थायी सीजफायर पर सहमति बनी। लेकिन अफगान तालिबान के रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब मुजाहिद ने स्पष्ट कर दिया कि इस समझौते में डूरंड लाइन पर कोई चर्चा नहीं हुई, और अफगानिस्तान इसे एक “काल्पनिक” या “परिकल्पित” रेखा मानता है। यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि डूरंड लाइन पर बातचीत के बिना स्थायी शांति की संभावनाएं बेहद कम हैं। इस रिपोर्ट में हम इस विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, हालिया घटनाक्रम, दोनों पक्षों के रुख और विशेषज्ञों की राय को विस्तार से कवर करेंगे।

डूरंड लाइन का ऐतिहासिक संदर्भ

डूरंड लाइन 1893 में ब्रिटिश भारत के विदेश सचिव सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड और अफगान अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच हुए समझौते से बनी एक 2,640 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है। यह रेखा पश्तून जनजातियों को विभाजित करती है, जो दोनों ओर बसी हुई हैं। अफगानिस्तान ने कभी इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में स्वीकार नहीं किया, जबकि पाकिस्तान इसे वैध मानता है। 1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद से यह विवाद और गहराया। अफगान सरकारों, включая तालिबान शासन, ने इसे “कृत्रिम” रेखा बताकर अस्वीकार किया है। 1948 में अफगानिस्तान ने पाकिस्तान की संयुक्त राष्ट्र सदस्यता के खिलाफ वोट किया था, इसी विवाद के चलते।

पश्तून राष्ट्रवाद और क्षेत्रीय दावों के कारण यह रेखा हमेशा तनाव का स्रोत रही है। तालिबान का मानना है कि यह रेखा पश्तूनों को अलग करती है और अफगानिस्तान के क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देती है। वहीं, पाकिस्तान इसे अपनी संप्रभुता का हिस्सा मानता है और सीमा पर बाड़ लगाने की कोशिश करता रहा है, जिसका तालिबान विरोध करता है।

हालिया संघर्ष और सीजफायर: क्या हुआ?

अक्टूबर 2025 की शुरुआत में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के काबुल, खोस्त, जलालाबाद और पक्तिका में हवाई हमले किए, जिनमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के कमांडरों को निशाना बनाया गया। पाकिस्तान का आरोप है कि TTP को अफगान तालिबान सुरक्षित ठिकाने दे रहा है, जो पाकिस्तान में आतंकी हमले करवा रहा है। 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान में आतंकवाद बढ़ा है, और पाकिस्तान इसे “तालिबान की प्रॉक्सी वॉर” मानता है।

झड़पें सीमा पर बढ़ीं, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिक मारे गए। अफगान तालिबान ने पाकिस्तान पर हमलों का जवाब दिया, लेकिन पाकिस्तान की सैन्य क्षमता के आगे वे सीमित रहे। 19 अक्टूबर को कतर और तुर्की की मध्यस्थता में दोहा में बातचीत हुई, जहां दोनों पक्षों ने “तत्काल सीजफायर” पर सहमति जताई। समझौते में व्यापार सामान्य करने, हमलों को रोकने और आगे तुर्की में बैठक करने की बात हुई। लेकिन तालिबान रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब ने दोहा से ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि डूरंड लाइन पर कोई चर्चा नहीं हुई, और यह “राष्ट्रों का मुद्दा है, सरकारों का नहीं।” उन्होंने इसे “काल्पनिक सीमा” बताया और कहा कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की संप्रभुता का सम्मान करने का वादा किया है।

कतर के विदेश मंत्रालय ने शुरुआत में बयान में “सीमा” शब्द का इस्तेमाल किया, लेकिन बाद में इसे हटा लिया, जो तालिबान के दबाव का संकेत है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा कि तालिबान को TTP को नियंत्रित करना होगा, अन्यथा पाकिस्तान जवाब देगा।

दोनों पक्षों के रुख और चुनौतियां

  • अफगान तालिबान का रुख: तालिबान डूरंड लाइन को मान्यता नहीं देता और इसे पश्तूनों को विभाजित करने वाली ब्रिटिश साजिश मानता है। वे TTP को “मुस्लिम भाई” कहकर समर्थन देते हैं और पाकिस्तान पर आरोप लगाते हैं कि वह अफगानिस्तान में हस्तक्षेप कर रहा है। मुल्ला याकूब ने कहा कि अफगानिस्तान पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध चाहता है, लेकिन संप्रभुता पर समझौता नहीं करेगा। तालिबान का दावा है कि वे TTP को पाकिस्तान के खिलाफ इस्तेमाल नहीं कर रहे, लेकिन पाकिस्तान इसे झूठ मानता है।
  • पाकिस्तान का रुख: पाकिस्तान डूरंड लाइन को अंतरराष्ट्रीय सीमा मानता है और TTP को अफगानिस्तान से खतरा बताता है। पाकिस्तानी सेना ने सीमा पर ऊंचाइयों पर कब्जा किया और बफर जोन बनाने की कोशिश की। पाकिस्तान के विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान TTP को प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल कर पाकिस्तान को अस्थिर करना चाहता है, ताकि डूरंड लाइन पर दावा मजबूत हो। पाकिस्तान ने अफगान शरणार्थियों को निकालने और वीजा सख्त करने जैसे कदम उठाए।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर चर्चाएं तीखी हैं। कई पाकिस्तानी यूजर्स का कहना है कि अगर तालिबान डूरंड लाइन नहीं मानता, तो पाकिस्तान को आगे बढ़कर वाखान कॉरिडोर तक सीमा धकेलनी चाहिए। वहीं, अफगान यूजर्स तालिबान के रुख का समर्थन करते हैं और पाकिस्तान को “आक्रमणकारी” कहते हैं।

शांति की संभावनाएं: बातचीत के बिना कितनी संभव?

विशेषज्ञों का मानना है कि डूरंड लाइन पर बातचीत के बिना शांति असंभव है। यह विवाद TTP जैसे आतंकी समूहों को पनाह देता है और सीमा पर तस्करी, आतंकवाद को बढ़ावा देता है। पाकिस्तानी सीनेटर मशाल यूसुफजई ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत ही एकमात्र रास्ता है, अन्यथा खैबर पख्तूनख्वा युद्ध का मैदान बन जाएगा।

एक संभावित समाधान “दोहा 2.0” जैसी वार्ता हो सकती है, जहां डूरंड लाइन को स्पष्ट रूप से संबोधित किया जाए। अगर हल होता है, तो पाकिस्तान को आर्थिक उछाल मिल सकता है, जबकि अफगानिस्तान को स्थिरता। लेकिन तालिबान की जिद और पाकिस्तान की सैन्य रणनीति के चलते, सीजफायर अस्थायी लगता है। भारत जैसे पड़ोसी देशों ने इस पर नजर रखी है, क्योंकि क्षेत्रीय अस्थिरता सभी को प्रभावित करती है।

निष्कर्ष में, डूरंड लाइन पर बातचीत के बिना शांति की संभावनाएं न्यूनतम हैं। हालिया सीजफायर एक राहत है, लेकिन बिना मूल मुद्दे को हल किए, संघर्ष फिर उभर सकता है। दोनों पक्षों को राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी, अन्यथा क्षेत्रीय सुरक्षा खतरे में रहेगी।

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