नेपाल में हाल ही में हुए Gen Z आंदोलन ने न केवल देश की सियासी तस्वीर को बदल दिया, बल्कि इसने वैश्विक स्तर पर भी चर्चा का केंद्र बना लिया। 8 सितंबर 2025 को शुरू हुए इस आंदोलन ने भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ युवाओं की आवाज को बुलंद किया। लेकिन इस आंदोलन की टाइमिंग और इसके परिणामस्वरूप हुए तख्तापलट ने कई सवाल खड़े किए हैं। खास तौर पर, कुछ विशेषज्ञ और विश्लेषक यह दावा कर रहे हैं कि क्या इस आंदोलन के पीछे अमेरिका का हाथ था, जिसने 90 करोड़ डॉलर की राशि झोंककर नेपाल में सत्ता परिवर्तन की स्क्रिप्ट लिखी? आइए, इस पूरे मामले को गहराई से समझते हैं।
आंदोलन की शुरुआत: सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार का गुस्सा
नेपाल में अगस्त 2025 में सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर फेसबुक, व्हाट्सएप, टिकटॉक और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया गया। यह प्रतिबंध Gen Z के लिए एक निजी हमले की तरह लगा, क्योंकि यह पीढ़ी अपनी आवाज उठाने के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर है। #EndCorruptionNepal और #YouthForChange जैसे हैशटैग के साथ युवाओं ने भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म और नेताओं के बच्चों की ऐश्वर्यपूर्ण जीवनशैली के खिलाफ अभियान शुरू किया।
आंदोलन जल्द ही हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन, मंत्रियों के घरों और सरकारी कार्यालयों को निशाना बनाया। काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह ने फेसबुक पर लिखा, “यह विशुद्ध रूप से जेनरेशन Z का आंदोलन है। आपके उत्पीड़क का इस्तीफा हो चुका है।” परिणामस्वरूप, 9 सितंबर 2025 को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा, और 12 सितंबर को पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की ने नेपाल की पहली महिला अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
90 करोड़ डॉलर और अमेरिकी हस्तक्षेप का सवाल
नेपाल मामलों के जानकार केशव प्रधान के अनुसार, नेपाल एक ऐसा मैदान बन चुका है जहां चीन और अमेरिका के हितों का टकराव हो रहा है। दिसंबर 2024 में नेपाल ने चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शामिल होने के लिए एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किया था। दूसरी ओर, अमेरिका मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) के तहत नेपाल में 50 करोड़ डॉलर के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में निवेश कर रहा है।
कुछ विश्लेषकों का दावा है कि Gen Z आंदोलन की टाइमिंग संदिग्ध है, खासकर क्योंकि ओली 16 सितंबर को भारत की यात्रा पर आने वाले थे। यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह आंदोलन केवल सोशल मीडिया बैन का परिणाम था, या इसके पीछे अमेरिका या अन्य बाहरी ताकतों का हाथ था? कुछ का मानना है कि अमेरिका ने नेपाल में सत्ता परिवर्तन के लिए 90 करोड़ डॉलर की भारी-भरकम राशि निवेश की, ताकि BRI के प्रभाव को कम किया जा सके और नेपाल को अपने प्रभाव क्षेत्र में लाया जाए। हालांकि, इस दावे का कोई ठोस सबूत उपलब्ध नहीं है।
डिस्कॉर्ड और टेक-ड्रिवन क्रांति
Gen Z आंदोलन की सबसे अनूठी विशेषता थी इसकी टेक-ड्रिवन प्रकृति। प्रदर्शनकारियों ने अमेरिकी मैसेजिंग ऐप डिस्कॉर्ड पर ‘यूथ अगेंस्ट करप्शन’ चैनल शुरू किया, जिसमें 10,000 से ज्यादा लोग शामिल हुए। इस चैनल पर वर्चुअल पोल के जरिए सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री चुना गया। लेकिन इस प्रक्रिया में खामियां भी उजागर हुईं। किसी भी व्यक्ति को बिना रोक-टोक कई बार वोट डालने की अनुमति थी, जिससे इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठे।
‘हामी नेपाल’ एनजीओ के अध्यक्ष सुदान गुरुङ की फंडिंग पर भी सवाल उठे, जिसने इस आंदोलन को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ का मानना है कि इस तरह की टेक-ड्रिवन क्रांति के पीछे विदेशी फंडिंग हो सकती है, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
आंदोलन ने नेपाल की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया। काठमांडू पोस्ट के अनुसार, लगभग 3 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जो देश की डेढ़ साल की बजट राशि के बराबर है। संसद भवन को जलाए जाने से 43.5 मिलियन डॉलर की लागत वाला ढांचा नष्ट हो गया। पर्यटन उद्योग संकट में है, और 10,000 से ज्यादा लोगों की नौकरियां चली गईं।
भारत और चीन की नजर
नेपाल की भौगोलिक स्थिति के कारण भारत और चीन दोनों इस आंदोलन को करीब से देख रहे हैं। भारत ने नेपाल में हिंसा पर चिंता जताई और अपने नागरिकों को सावधानी बरतने की सलाह दी। दूसरी ओर, चीन ने इस संकट पर चुप्पी साध रखी है, क्योंकि नई सरकार के भारत या अमेरिका की ओर झुकने से BRI प्रोजेक्ट्स को झटका लग सकता है।
निष्कर्ष
नेपाल का Gen Z आंदोलन भ्रष्टाचार और नेपोटिज्म के खिलाफ युवाओं की एकजुटता का प्रतीक है, लेकिन इसकी टाइमिंग और टेक-ड्रिवन प्रकृति ने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या यह वास्तव में एक स्वतःस्फूर्त जन-आंदोलन था, या इसके पीछे कोई सुनियोजित स्क्रिप्ट थी? 90 करोड़ डॉलर के कथित अमेरिकी निवेश के दावे अभी तक पुष्ट नहीं हुए हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि नेपाल की सियासत अब एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है। सुशीला कार्की के नेतृत्व में नई सरकार के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं, और दुनिया की नजर इस बात पर टिकी है कि नेपाल इस संकट से कैसे उबरता है।
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