हैदराबाद, 17 अक्टूबर 2025: बच्चों की जान बचाने वाली ‘ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्ट्स’ (ORS) को लेकर एक लंबी लड़ाई आखिरकार जीत की ओर पहुंच गई है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने गैर-डब्ल्यूएचओ अनुपालन वाले पेय पदार्थों पर ‘ORS’ लेबल लगाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। यह फैसला हैदराबाद की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सिवरंजनी संतोष की आठ साल लंबी एकाकी मुहिम का नतीजा है, जिन्होंने चीनी युक्त पेयों को गुमराह करने वाले ‘ORS’ के रूप में बेचने के खिलाफ लगातार आवाज बुलंद की।
डॉ. सिवरंजनी ने बताया, “हमने यह जंग जीत ली है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी जीत है, क्योंकि अब ‘ORS’ टैग केवल डब्ल्यूएचओ-अनुमोदित फॉर्मूले के लिए आरक्षित रहेगा।” उन्होंने इंस्टाग्राम पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए आंसू भी बहाए। डॉक्टर ने चेतावनी दी कि गलत लेबल वाले पेय बच्चों में डायरिया को और बदतर बना देते हैं, क्योंकि इनमें चीनी की मात्रा डब्ल्यूएचओ के मानक से 10 गुना ज्यादा होती है। इससे डिहाइड्रेशन बढ़ जाता है और जान का खतरा हो सकता है।
मुहिम की शुरुआत और संघर्ष की कहानी
करीब एक दशक पहले डॉ. सिवरंजनी ने नोटिस किया कि कई कंपनियां फल-आधारित या इलेक्ट्रोलाइट ड्रिंक्स को ‘ORS’ के नाम से बेच रही हैं, जबकि ये डब्ल्यूएचओ के निर्धारित फॉर्मूले (जिसमें 245 मिलीओस्मोल्स प्रति लीटर ऑस्मोलैरिटी और 1.35 ग्राम ग्लूकोज प्रति 100 मिलीलीटर होना चाहिए) का पालन नहीं करते। इनमें अतिरिक्त चीनी, कृत्रिम स्वीटनर जैसे स्टीविया या हर्बल सामग्री होती है, जो डायरिया के दौरान पानी को आंतों में खींच लेती है।
डॉ. सिवरंजनी ने व्यक्तिगत रूप से ऐसे कई केस देखे जहां बच्चे दवा की दुकानों से ‘ORS’ खरीदकर लाते, लेकिन उनकी हालत बिगड़ जाती। उन्होंने केंद्रीय ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ), स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MOHFW), FSSAI और स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा तक अपनी शिकायतें पहुंचाईं। 2022 में उन्होंने तेलंगाना हाईकोर्ट में पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (पीआईएल) दायर की, जिसमें कंपनियों की धोखाधड़ी को उजागर किया। कोर्ट ने FSSAI और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से जवाब मांगा।
उनकी वायरल सोशल मीडिया वीडियो (जिन्हें 33 लाख से ज्यादा व्यूज मिले) ने माता-पिता, डॉक्टरों और प्रभावशाली लोगों को एकजुट किया। अप्रैल 2022 में FSSAI ने पहला निर्देश जारी किया, लेकिन कंपनियों की रिट याचिकाओं के बाद जुलाई में इसे अस्थायी रूप से ढीला कर दिया गया। डॉ. सिवरंजनी ने हार नहीं मानी और लगातार दबाव बनाए रखा।
FSSAI का ऐतिहासिक फैसला
14 अक्टूबर 2025 को FSSAI ने आदेश जारी किया कि कोई भी खाद्य ब्रांड ‘ORS’ या ‘ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्ट्स’ शब्द का इस्तेमाल उत्पाद के नाम, लेबल या ट्रेडमार्क में नहीं कर सकता, जब तक कि यह डब्ल्यूएचओ के सख्त मानकों का पालन न करे। 15 अक्टूबर को स्पष्टीकरण आया कि ‘ORS’ का कोई भी उपयोग—चाहे अकेला हो या प्रिफिक्स/सफिक्स के साथ—फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट, 2006 के तहत मिसब्रांडिंग माना जाएगा और दंडनीय होगा।
यह फैसला 2022 के अप्रैल निर्देश को बहाल करता है, जिसमें गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर रोक लगाई गई थी। FSSAI ने कहा कि ऐसे लेबल उपभोक्ताओं को भ्रमित करते हैं और स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं। अब केवल चिकित्सकीय ORS ही इस नाम का उपयोग कर सकेंगे।
विशेषज्ञों की राय और प्रभाव
बाल रोग विशेषज्ञों ने इसे “बच्चों के लिए जीवन रक्षक कदम” बताया। डॉ. सिवरंजनी ने सलाह दी: “डायरिया में कृत्रिम स्वीटनर, फ्लेवर्ड या हर्बल इंग्रीडिएंट वाले पेय न दें। हमेशा डब्ल्यूएचओ-अनुमोदित ORS चुनें।” यह फैसला मध्य प्रदेश कफ सिरप कांड जैसी घटनाओं के बाद और महत्वपूर्ण हो गया, जहां गलत उत्पादों से बच्चों की मौत हुई।
डॉ. सिवरंजनी की मुहिम ने न केवल लेबलिंग मानकों को मजबूत किया, बल्कि फूड रेगुलेशन और ड्रग सेफ्टी के बीच ओवरलैप पर बहस छेड़ दी। उन्होंने कहा, “यह जीत लोगों की सामूहिक ताकत—माता-पिता, डॉक्टरों, वकीलों और प्रभावशाली लोगों—की है।”
यह फैसला भारत में उपभोक्ता सुरक्षा को नई दिशा देगा और गुमराह करने वाले मार्केटिंग प्रैक्टिस पर अंकुश लगाएगा।
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