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कोल्ड्रिफ सिरप कांड: जहरीली दवा ने ली 11 बच्चों की जान, जानें पूरा मामला और बचाव के उपाय

मुख्य बिंदु: मध्य प्रदेश में कोल्डरिफ कफ सिरप से जुड़ी कम से कम 13 बच्चों की मौतें हुई हैं, जिसमें विषाक्त रसायन डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की 48.6% मात्रा पाई गई है। यद्यपि स्वीकार्य सीमा केवल 0.1% है, यह मात्रा अत्यंत खतरनाक है। यह घटना दवा की गुणवत्ता नियंत्रण पर सवाल उठाती है, और विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के लिए दवाओं में सख्त जांच जरूरी है। विवादास्पद रूप से, पोस्टमॉर्टम न होने और अधिकारियों की लापरवाही की शिकायतें सामने आई हैं, जो पारदर्शिता की कमी को उजागर करती हैं।

घटना का संक्षिप्त विवरण चेन्नई की स्रेसन फार्मा द्वारा निर्मित कोल्डरिफ सिरप (बैच SR-13) के सेवन से मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और बैतूल जिलों में बच्चे किडनी फेलियर का शिकार हो रहे हैं। लक्षणों में उल्टी, बुखार और पेशाब बंद होना शामिल है। राजस्थान में भी इसी सिरप से जुड़ी मौतें रिपोर्ट हुई हैं।

स्वास्थ्य जोखिम DEG एक औद्योगिक रसायन है जो किडनी और लीवर को नुकसान पहुंचाता है। बच्चों में यह घातक साबित हो रहा है, जैसा कि गाम्बिया (2022) जैसी वैश्विक घटनाओं में देखा गया।

सरकारी प्रतिक्रिया मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में सिरप पर बैन लगाया गया है। एक डॉक्टर को लापरवाही के लिए गिरफ्तार किया गया, जबकि केंद्र सरकार ने दो साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप न देने की सलाह दी है।


कोल्डरिफ सिरप कांड: बच्चों की अनगिनत मौतें और दवा उद्योग की उदासीनता – एक विस्तृत विश्लेषण

भारत के फार्मास्यूटिकल सेक्टर, जो वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, एक बार फिर विफल साबित हुआ है। चेन्नई स्थित स्रेसन फार्मास्यूटिकल्स द्वारा निर्मित कोल्डरिफ कफ सिरप से जुड़ी घटना ने न केवल माता-पिता के दिलों को तोड़ा है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अक्टूबर 2025 तक, मध्य प्रदेश में कम से कम 13 बच्चों की मौतें इस सिरप से जुड़ी पाई गई हैं, जिसमें विषाक्त डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की भारी मात्रा (48.6%) की पुष्टि हुई है। यह रसायन, जो एंटीफ्रीज और पेंट जैसे औद्योगिक उत्पादों में इस्तेमाल होता है, दवाओं में घुसपैठ करने से किडनी फेलियर जैसी घातक बीमारियां पैदा करता है। इस लेख में हम इस घटना की गहराई में उतरेंगे, समयरेखा, स्वास्थ्य प्रभाव, सरकारी कार्रवाइयों और वैश्विक संदर्भ को समझेंगे, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदी रोकी जा सके।

घटना की पृष्ठभूमि और समयरेखा

यह संकट सितंबर 2025 के प्रारंभ से शुरू हुआ, जब छिंदवाड़ा जिले के बच्चे सामान्य सर्दी-खांसी के इलाज के लिए दिए गए कोल्डरिफ सिरप के बाद गंभीर लक्षण दिखाने लगे। बैच SR-13, जो मई 2025 में निर्मित और अप्रैल 2027 तक वैध था, मुख्य संदिग्ध है। शुरुआत में 11 मौतें दर्ज की गईं, लेकिन एनडीटीवी की जांच से पता चला कि कम से कम 12 मौतें हुईं, जिनमें से तीन को प्रशासन ने रिपोर्ट नहीं किया। हाल ही में बैतूल जिले के अमला ब्लॉक में दो और बच्चे – 4 वर्षीय कबीर और 2.5 वर्षीय गर्मित – की मौतें सामने आईं, जो सिरप सेवन के बाद किडनी जटिलताओं से जुड़ी हैं। कुल मिलाकर, 14 मौतों का दावा किया जा रहा है, जिसमें छिंदवाड़ा में 14 बच्चे शामिल हैं। राजस्थान में भी इसी सिरप से चार मौतें हुईं।

नीचे दी गई तालिका घटना की समयरेखा को स्पष्ट करती है:

तारीखमुख्य घटना
सितंबर 2025 का प्रारंभछिंदवाड़ा में पहले बच्चे किडनी फेलियर से मरने लगे; सिरप संदेहास्पद।
सितंबर अंतराजस्थान में अतिरिक्त मौतें; कुल 11 मौतें मध्य प्रदेश में दर्ज।
3 अक्टूबर 2025तमिलनाडु लैब में DEG की 48.6% मौजूदगी की पुष्टि।
4 अक्टूबर 2025मध्य प्रदेश में पूर्ण बैन; डॉक्टर प्रवीण सोनी गिरफ्तार।
5 अक्टूबर 2025बैतूल में दो और मौतें; केंद्र सरकार ने 19 दवाओं पर जांच का आदेश दिया।

स्वास्थ्य जोखिम और DEG का खतरा

डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) एक बेस्वाद, मीठा रसायन है जो ग्लिसरीन की जगह सस्ते विकल्प के रूप में इस्तेमाल होता है। बच्चों के नाजुक शरीर में यह तेजी से मेटाबोलाइज होकर जहरीले यौगिक बनाता है, जो किडनी, लीवर और तंत्रिका तंत्र को नष्ट कर देता है। प्रभावित बच्चों में बुखार, उल्टी, पेट फूलना और पेशाब बंद होना जैसे लक्षण देखे गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2022 से अब तक DEG-दूषित सिरपों से 300 से अधिक बच्चों की मौतें वैश्विक स्तर पर हुई हैं, जिसमें गाम्बिया (70+ मौतें), उज्बेकिस्तान (18 मौतें) और इंडोनेशिया शामिल हैं। भारत में यह 2023 की WHO चेतावनी की याद दिलाता है, जब निर्यातित दवाओं में खराब गुणवत्ता पाई गई। विशेषज्ञों का मानना है कि साप्ताहिक जांच और आपूर्ति श्रृंखला ट्रेसिबिलिटी अनिवार्य होनी चाहिए।

सरकारी और नियामक कार्रवाइयां

घटना के बाद राज्यों ने त्वरित कदम उठाए, लेकिन देरी और लापरवाही की शिकायतें भी सामने आईं। मध्य प्रदेश सरकार ने 4 अक्टूबर को सिरप और कंपनी के सभी उत्पादों पर बैन लगाया, साथ ही स्रेसन फार्मा के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। डॉक्टर प्रवीण सोनी को लापरवाही बरतने और सिरप लिखने के लिए गिरफ्तार किया गया, जो छिंदवाड़ा में 660 बोतलों के वितरण से जुड़े थे। तमिलनाडु ने 48 घंटों में निर्माता इकाई बंद कर दी, जबकि केरल और तेलंगाना ने बिक्री निलंबित कर दी।

केंद्र सरकार ने 4 अक्टूबर को सलाह जारी की कि दो साल से कम उम्र के बच्चों को कफ-कोल्ड दवाएं न दी जाएं। केंद्रीय ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) ने छह राज्यों में 19 दवाओं (कफ सिरप और एंटीबायोटिक्स सहित) पर जोखिम-आधारित जांच शुरू की। हालांकि, एनडीटीवी जांच से खुलासा हुआ कि 11 शवों पर पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ, परिवारों के सहमति से इनकार के दावे झूठे पाए गए, और अधिकारी छुट्टियों पर थे। ड्रग इंस्पेक्टरों को संदिग्ध दवाओं की बिक्री रोकने का निर्देश दिया गया है।

नीचे दी गई तालिका राज्य-स्तरीय कार्रवाइयों को दर्शाती है:

राज्यकार्रवाई ली गईअतिरिक्त विवरण
मध्य प्रदेशसिरप और कंपनी उत्पादों पर पूर्ण बैन; डॉक्टर गिरफ्तार13+ मौतें; 660 बोतलों का वितरण रोका गया।
तमिलनाडुबिक्री बैन और इकाई बंद; DEG टेस्टिंग शुरूनिर्माता का गृह राज्य; 48 घंटों में एक्शन।
केरलबिक्री निलंबनचेतावनी के बाद预防ात्मक कदम।
तेलंगानाजनता को अलर्ट; स्टॉक जब्तटोल-फ्री नंबर (1800-599-6969) पर रिपोर्टिंग।
गुजरातसभी कफ सिरपों पर हानिकारक तत्वों की जांचजोखिम-आधारित निरीक्षण विस्तारित।
केंद्र सरकारदो साल से कम बच्चों को सिरप न देने की सलाह; 19 दवाओं पर जांचबहु-विषयक टीम मौतों की जांच कर रही।

व्यापक प्रभाव और सबक

यह घटना भारत के फार्मा उद्योग की कमजोरियों को उजागर करती है: स्व-नियमन पर अत्यधिक निर्भरता, आपूर्ति श्रृंखला की निगरानी की कमी, और जेनेरिक दवाओं में लागत कटौती। CDSCO की ढीली प्रवर्तन प्रक्रिया ने विश्वास को हिलाया है। माता-पिता के लिए सलाह: किसी भी कोल्डरिफ स्टॉक को फेंक दें और प्रमाणित स्रोतों से विकल्प लें। सिफारिशें включают DEG स्क्रीनिंग को अनिवार्य बनाना, बाल चिकित्सा दवाओं के लिए फार्माकोविजिलेंस मजबूत करना, और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत कड़े दंड।

वैश्विक संदर्भ में, यह इराक (2024) में भारतीय सिरपों से हुई मौतों की याद दिलाता है, जहां निर्यात रोका गया। WHO की 2023 दिशानिर्देश – आपूर्ति श्रृंखला ट्रेसिबिलिटी – को अपनाने की जरूरत है। सार्वजनिक बहस में पारदर्शिता की मांग तेज हो रही है, जहां डॉक्टरों को निशाना बनाया जा रहा है लेकिन नियामकों को बख्शा जा रहा है।

यह त्रासदी दुखद है, लेकिन सुधारों का अवसर भी। यदि हम एकजुट होकर दबाव बनाएं, तो भविष्य की पीढ़ियों को सुरक्षित रख सकेंगे। क्या आपका विचार? कमेंट्स में साझा करें।

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