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Cloudburst in Chamoli 3 villages affected, 12 people missing

उत्तराखंड के चमोली में बादल फटने से भारी तबाही: 3 गांव प्रभावित, 12 लोग लापता, राहत कार्य जोरों पर

चमोली, उत्तराखंड | 18 सितंबर 2025

उत्तराखंड के चमोली जिले में गुरुवार देर रात दो स्थानों पर बादल फटने की घटनाओं ने भारी तबाही मचाई है। नंदानगर और देवाल ब्लॉक के पास हुई इन घटनाओं ने कम से कम तीन गांवों—नंदानगर, रैणी, और कुलिंग—को बुरी तरह प्रभावित किया है। प्रारंभिक रिपोर्ट्स के अनुसार, 12 लोग लापता हैं, दर्जनों मकान और दुकानें मलबे में दब गई हैं, और सड़कों, बिजली, और पेयजल आपूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाएं पूरी तरह ठप हो चुकी हैं। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF), राज्य आपदा मोचन बल (SDRF), और स्थानीय प्रशासन ने राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिए हैं, लेकिन भारी बारिश और खराब मौसम ने चुनौतियों को और बढ़ा दिया है। मौसम विभाग (IMD) ने अगले 48 घंटों में और भारी बारिश की चेतावनी दी है, जिससे स्थिति और गंभीर हो सकती है।

घटना का विवरण: रात में अचानक आई आपदा

17 सितंबर 2025 की रात करीब 11:00 बजे, चमोली के नंदानगर क्षेत्र में पहला बादल फटा। तेज बारिश के साथ भारी मात्रा में मलबा और पानी ऊपरी पहाड़ी क्षेत्रों से निचले इलाकों में बहकर आया, जिसने नंदानगर गांव को सबसे ज्यादा प्रभावित किया। कुछ घंटों बाद, रात 1:30 बजे के आसपास, देवाल ब्लॉक के पास दूसरा बादल फटने की घटना हुई, जिसने रैणी और कुलिंग गांवों में तबाही मचाई। स्थानीय लोगों के अनुसार, रात के अंधेरे में अचानक आए मलबे और पानी ने उन्हें संभलने का मौका तक नहीं दिया।

नंदानगर के एक निवासी, रमेश सिंह ने बताया, “हम सो रहे थे जब अचानक तेज आवाज आई। देखते ही देखते मलबा और पानी घर में घुस आया। मेरे पड़ोसी का पूरा परिवार अभी लापता है।” रैणी गांव, जो 2021 की ऋषिगंगा आपदा के लिए भी जाना जाता है, एक बार फिर प्रकृति के प्रकोप का शिकार बना। कुलिंग गांव में सड़क का 40 मीटर हिस्सा बह गया, जिससे गांव का जिला मुख्यालय से संपर्क पूरी तरह कट गया।

प्रभावित क्षेत्रों का नुकसान: प्रारंभिक आंकड़े

प्रशासन के शुरुआती आकलन के अनुसार, निम्नलिखित नुकसान हुआ है:

गांवक्षतिग्रस्त संरचनाएंलापता लोगअन्य नुकसान
नंदानगर8-10 मकान, 3 दुकानें, 1 सामुदायिक भवन7-8सड़कें अवरुद्ध, बिजली-पानी की लाइनें टूटीं, फसलें और मवेशी नष्ट
रैणी5-6 मकान, 1 प्राथमिक स्कूल, 2 गोशालाएं3-4खेत पूरी तरह तबाह, नदी किनारे बनी सड़क बह गई, मोबाइल नेटवर्क ठप
कुलिंग3-4 मकान, 1 मंदिर, सड़क का 40 मीटर हिस्सा2-3पेयजल आपूर्ति रुकी, गांव का संपर्क कटा, स्थानीय बाजार में भारी नुकसान

कुल मिलाकर, 15-20 मकान पूरी तरह या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं। खेतों में खड़ी फसलें, खासकर मंडुआ और गेहूं, पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं। मवेशियों के बहने और मलबे में दबने की भी खबरें हैं।

बचाव और राहत कार्य: प्रशासन का त्वरित एक्शन

घटना की सूचना मिलते ही चमोली जिला प्रशासन ने तत्काल राहत कार्य शुरू किए। NDRF की दो टीमें देहरादून से रवाना होकर नंदानगर और देवाल पहुंच चुकी हैं, जबकि SDRF की टीमें रातभर मलबे में फंसे लोगों को निकालने में जुटी रहीं। अब तक 3 लोगों को सुरक्षित निकाला गया है, जिनमें एक बच्चा और एक बुजुर्ग महिला शामिल हैं। हालांकि, भारी बारिश और रात का अंधेरा बचाव कार्यों में बाधा डाल रहा है। हेलीकॉप्टर की मदद लेने की कोशिश की जा रही है, लेकिन खराब मौसम के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा।

चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने बताया, “हमारी प्राथमिकता लापता लोगों को ढूंढना और प्रभावित परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना है। राहत शिविरों में भोजन, कंबल, और दवाइयों की व्यवस्था की गई है।” प्रशासन ने प्रभावित गांवों में 4 राहत शिविर स्थापित किए हैं, जहां करीब 150 लोगों को अस्थायी आश्रय दिया गया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देर रात आपातकालीन बैठक बुलाई और प्रभावित परिवारों के लिए तत्काल 4 लाख रुपये की सहायता राशि की घोषणा की। उन्होंने X पर पोस्ट किया: “चमोली में बादल फटने की घटना अत्यंत दुखद है। प्रशासन और बचाव टीमें पूरी ताकत से काम कर रही हैं। प्रभावितों को हरसंभव मदद दी जाएगी। लोग सतर्क रहें और सुरक्षित स्थानों पर रहें।” केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भी केंद्र सरकार की ओर से हरसंभव सहायता का भरोसा दिलाया है।

मौसम की चेतावनी: और बिगड़ सकते हैं हालात

मौसम विभाग (IMD) ने चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, पौड़ी गढ़वाल, और टिहरी जिलों के लिए ‘ऑरेंज अलर्ट’ जारी किया है। अगले 48 घंटों में 100-150 मिमी तक भारी बारिश की संभावना है, जिससे नदियां—विशेष रूप से अलकनंदा और मंदाकिनी—खतरे के निशान को पार कर सकती हैं। मौसम वैज्ञानिक डॉ. आरके जोशी ने बताया, “हिमालयी क्षेत्रों में मॉनसून का अंतिम चरण अक्सर भारी बारिश लाता है। जलवायु परिवर्तन के कारण बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं।”

यह उत्तराखंड में इस साल की तीसरी बड़ी बादल फटने की घटना है। अगस्त 2025 में थराली और उत्तरकाशी के धराली में भी ऐसी ही घटनाओं में भारी नुकसान हुआ था। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लेशियरों का पिघलना, अवैध निर्माण, और जंगलों की कटाई ने पहाड़ी क्षेत्रों को और कमजोर कर दिया है।

प्रभावितों की आपबीती: “सब कुछ खत्म हो गया”

नंदानगर की 35 वर्षीय राधा देवी ने रोते हुए बताया, “हमारा घर, खेत, सब कुछ बह गया। मेरे पति और बेटा लापता हैं। हमें नहीं पता अब क्या करें।” रैणी गांव के एक बुजुर्ग ने कहा, “2021 में भी हमने सब खोया था। अब फिर वही मंजर है। सरकार को कुछ करना होगा।” कुलिंग में स्थानीय बाजार के दुकानदारों को भारी नुकसान हुआ है, क्योंकि उनकी दुकानें मलबे में दब गईं।

स्थानीय स्कूल और सामुदायिक भवनों को भी नुकसान पहुंचा है, जिससे बच्चों की पढ़ाई और सामुदायिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। प्रभावित परिवारों को तत्काल भोजन, पानी, और कपड़े चाहिए, लेकिन सड़कों के कटने से राहत सामग्री पहुंचाने में दिक्कत हो रही है।

व्यापक प्रभाव: पर्यटन और अर्थव्यवस्था पर असर

चमोली जिला चार धाम यात्रा का प्रमुख पड़ाव है, और यह आपदा पर्यटन उद्योग के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है। सितंबर का महीना यात्रियों और पर्यटकों के लिए व्यस्त रहता है, लेकिन अब सड़कों के अवरुद्ध होने और खतरे की चेतावनियों के कारण यात्रा रद्द होने की आशंका है। स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि पहले ही कोविड और अन्य आपदाओं ने उनकी कमर तोड़ दी थी, और अब यह नई आपदा उनके लिए और मुश्किलें लाई है।

विशेषज्ञों की राय: दीर्घकालिक उपाय जरूरी

पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी ने चेतावनी दी कि “हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं अब सामान्य हो रही हैं। हमें अवैध निर्माण पर रोक, जंगल बचाने, और पुराने लैंडस्लाइड जोन में ट्रीटमेंट की जरूरत है।” उन्होंने सुझाव दिया कि स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित करना और मौसम की सटीक जानकारी पहुंचाना जरूरी है।

आगे की राह: चुनौतियां और उम्मीद

प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वे नदियों और नालों के पास न जाएं और मौसम अलर्ट पर नजर रखें। स्थानीय पुलिस और स्वयंसेवी संगठन भी राहत कार्यों में मदद कर रहे हैं। हालांकि, सड़कों के अवरुद्ध होने और बिजली-पानी की आपूर्ति ठप होने से राहत कार्यों में देरी हो रही है।

यह आपदा एक बार फिर हिमालयी क्षेत्रों की नाजुकता को उजागर करती है। सरकार और स्थानीय समुदायों को मिलकर दीर्घकालिक उपाय करने होंगे, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके। फिलहाल, सभी की निगाहें बचाव कार्यों पर टिकी हैं, और उम्मीद है कि लापता लोग जल्द सुरक्षित मिल जाएंगे।

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