छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में धर्मांतरण और सांस्कृतिक परंपराओं को लेकर लंबे समय से तनाव चल रहा है। दिसंबर 2025 में यह विवाद बड़े तेवड़ा गांव (आमाबेड़ा थाना क्षेत्र, भानुप्रतापपुर ब्लॉक) में चरम पर पहुंच गया, जब एक शव दफनाने को लेकर हिंसक झड़प हुई। यह घटना आदिवासी रीति-रिवाजों (शव दाह) और ईसाई प्रथा (दफन) के बीच टकराव का प्रतीक बन गई। आज तक की ग्राउंड रिपोर्ट (24 दिसंबर 2025) के अलावा कई अन्य स्रोतों से मिली जानकारी के आधार पर यह विवाद न केवल धार्मिक, बल्कि आदिवासी पहचान, आरक्षण और सामाजिक एकता से जुड़ा है।
घटना की विस्तृत समयरेखा
- 15-16 दिसंबर 2025: गांव के सरपंच राजमन सलाम (जिनके परिवार ने ईसाई धर्म अपनाया है) के पिता चमरा राम सलाम (70 वर्षीय) की मौत हो गई। परिवार ने शव को अपनी निजी जमीन पर ईसाई रीति से दफनाया। आदिवासी ग्रामीणों ने इसका विरोध किया, क्योंकि गांव की ग्राम सभा ने पहले ही फैसला लिया था कि धर्मांतरित व्यक्तियों का शव गांव में दफन नहीं किया जाएगा – यह आदिवासी ‘देव प्रथा’ और परंपराओं का उल्लंघन माना गया।
- 17 दिसंबर: विरोध बढ़ा। कुछ रिपोर्ट्स में आरोप है कि ईसाई पक्ष ने बाहर से लोग (भीम आर्मी सहित) बुलाए, जिससे तनाव बढ़ा। मारपीट की घटनाएं हुईं, सरपंच के भाई-भाभी घायल हुए।
- 18 दिसंबर: विवाद हिंसक हो गया। आक्रोशित ग्रामीणों ने दो-तीन चर्चों में आग लगाई, तोड़फोड़ की। पत्थरबाजी में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP) आशीष बंछोर सहित 20 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए। DIG और SP स्तर के अधिकारी भी मौके पर थे। प्रशासन ने एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के आदेश पर शव को कब्र से निकालकर पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा और गांव से बाहर दफनाया। धारा 144 लगाई गई, गांव को छावनी में बदल दिया गया।
- 20 दिसंबर के आसपास: स्थिति शांत हुई, लेकिन तनाव बना रहा।
- 23 दिसंबर: गांव के पूर्व चर्च लीडर महेंद्र बघेल ने हिंदू धर्म में ‘घर वापसी’ की। शीतला मंदिर में पूजा की और आरोप लगाया कि कुछ लोग हिंसा भड़का रहे थे। उन्होंने दावा किया कि 200 लोग उनके साथ वापस लौटे।
- 24 दिसंबर: सर्व आदिवासी समाज के आह्वान पर छत्तीसगढ़ बंद। बंद को छत्तीसगढ़ चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (CCCI) और ट्रेडर्स संगठनों का समर्थन मिला। कई जिलों (रायपुर, कांकेर, दुर्ग, बस्तर) में दुकानें बंद रहीं, लेकिन प्रभाव मिश्रित रहा। रायपुर में कुछ जगहों पर क्रिसमस सजावट तोड़ी गई। बंद के दौरान कांकेर में एक धर्मांतरित महिला के घर तोड़फोड़ और अन्य गांवों में ‘घर वापसी’ की घटनाएं रिपोर्ट हुईं (जैसे चिखली गांव में 19 लोग)।
दोनों पक्षों के दावे
- आदिवासी समाज का पक्ष (सर्व आदिवासी समाज, विश्व हिंदू परिषद आदि): मिशनरियां प्रलोभन (पैसा, नौकरी, स्वास्थ्य सुविधाएं) देकर धर्मांतरण करा रही हैं, जिससे आदिवासी संस्कृति और ST आरक्षण प्रभावित हो रहा है। कांकेर में 14-20 गांवों में पादरियों के प्रवेश पर प्रतिबंध के बोर्ड लगे हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नवंबर 2025 में ऐसे प्रतिबंधों को ‘एहतियाती कदम’ बताकर वैध ठहराया। 2025 में बस्तर-कांकेर में 19+ शव दफन विवाद दर्ज।
- ईसाई समुदाय का पक्ष (छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम, यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम): यह हिंदुत्व कट्टरता से प्रेरित हिंसा है। अल्पसंख्यकों को दफन का मौलिक अधिकार तक नहीं मिल रहा। 2025 में भारत में ईसाइयों पर 700+ हमले, छत्तीसगढ़ में कई चर्च जले, घर क्षतिग्रस्त। कई परिवार डर से गांव छोड़ चुके। वे कहते हैं कि धर्मांतरण स्वैच्छिक है और आरोप आधारहीन।
व्यापक संदर्भ और आंकड़े
- छत्तीसगढ़ (खासकर बस्तर डिवीजन) में 2025 में शव दफन विवाद के 19 मामले (यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के अनुसार)। पिछले दो वर्षों में 350+ ऐसे मामले।
- भारत में 2025 में ईसाइयों पर हिंसा बढ़ी: नवंबर तक 700+ मामले।
- राजनीतिक स्तर पर: गृह मंत्री विजय शर्मा ने सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून का वादा किया। मौजूदा फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट को संशोधित करने की बात। कांग्रेस ने बंद को ‘सरकार-आरएसएस प्रायोजित’ बताया।
वर्तमान स्थिति (25 दिसंबर 2025 तक)
बंद के बाद स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में है। प्रशासन ने भारी पुलिस बल तैनात किया। दोनों पक्षों में संवाद की कमी है, और दूरदराज गांवों में भय का माहौल। लंबे समय में सख्त कानून, निष्पक्ष जांच और अंतर-समुदाय संवाद ही समाधान लगता है। यह विवाद आदिवासी इलाकों में गहरी सामाजिक दरार को उजागर करता है, जहां धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक संरक्षण के बीच संतुलन बिगड़ रहा है।


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