22 दिसंबर 2025 को रॉयटर्स द्वारा प्राप्त अमेरिकी रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) की एक ड्राफ्ट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि चीन ने मंगोलिया सीमा के निकट तीन नए मिसाइल साइलो फील्ड्स में 100 से अधिक सॉलिड-फ्यूल DF-31 इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें (ICBM) लोड कर दी हैं। यह रिपोर्ट चीन की तेजी से बढ़ती न्यूक्लियर और सैन्य क्षमता को उजागर करती है, जो किसी भी अन्य न्यूक्लियर पावर से अधिक तेज गति से हो रही है।
पिछली पेंटागन रिपोर्टों में इन साइलो फील्ड्स के निर्माण की पुष्टि हुई थी, लेकिन यह पहली बार है जब सार्वजनिक रूप से अनुमान लगाया गया है कि इनमें मिसाइलें लोड की जा चुकी हैं। ये साइलो फील्ड्स उत्तरी चीन में स्थित हैं और सॉलिड-फ्यूल मिसाइलों की तैनाती से चीन की सेकंड-स्ट्राइक क्षमता (पहले हमले के बाद जवाबी हमला) काफी मजबूत हो जाती है, क्योंकि सॉलिड फ्यूल वाली मिसाइलें तेजी से लॉन्च की जा सकती हैं।
रिपोर्ट नोट करती है कि ये तैनाती चीन की “अर्ली वार्निंग काउंटरस्ट्राइक” रणनीति का हिस्सा है, जो अमेरिकी मिसाइल डिफेंस सिस्टम को चुनौती दे सकती है। हालांकि, रिपोर्ट में इन मिसाइलों के संभावित टार्गेट्स का जिक्र नहीं है।
DF-31 मिसाइल की विस्तृत ताकत और तकनीकी विशेषताएं
DF-31 (नाटो कोडनेम: CSS-10) चीन की थर्ड-जेनरेशन सॉलिड-फ्यूल ICBM है, जो मूल रूप से रोड-मोबाइल थी लेकिन अब साइलो-बेस्ड वेरिएंट्स में भी तैनात हो रही है। इसके मुख्य वेरिएंट्स हैं:
- DF-31 (बेसिक):
- रेंज: 7,000-8,000 किमी।
- वारहेड: सिंगल न्यूक्लियर वारहेड (यील्ड: 200-300 किलोटन से 1 मेगाटन तक)।
- लंबाई: लगभग 13-15 मीटर, व्यास: 2 मीटर, लॉन्च वजन: 42-47 टन।
- प्रोपेलेंट: थ्री-स्टेज सॉलिड फ्यूल – लिक्विड फ्यूल वाली पुरानी DF-5 की तुलना में ज्यादा सुरक्षित, तेज लॉन्च (मिनटों में) और सर्वाइवेबल।
- यह अमेरिका के कुछ हिस्सों तक पहुंच सकती है, लेकिन मुख्य रूप से एशिया और यूरोप पर फोकस्ड।
- DF-31A/AG (एडवांस्ड वेरिएंट्स):
- रेंज: 11,000-13,000+ किमी (अमेरिका के ज्यादातर हिस्सों, जिसमें कॉन्टिनेंटल यूएस शामिल है, तक पहुंच)।
- वारहेड: सिंगल या MIRV (मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल री-एंट्री व्हीकल) क्षमता – 3-5 वारहेड्स (प्रत्येक 90-150 किलोटन यील्ड)।
- पेनेट्रेशन एड्स: डिकॉय वारहेड्स और अन्य काउंटरमेजर्स जो मिसाइल डिफेंस को भ्रमित कर सकते हैं।
- DF-31AG: ऑफ-रोड मोबिलिटी के साथ बेहतर TEL (ट्रांसपोर्टर-इरेक्टर-लॉन्चर)।
- पहली तैनाती: 2006-2007 में, और अब साइलो में एडाप्टेड।
सॉलिड फ्यूल की वजह से ये मिसाइलें लिक्विड-फ्यूल वाली पुरानी मिसाइलों (जैसे DF-5) से ज्यादा रेडी और कम वल्नरेबल हैं। साइलो तैनाती से फर्स्ट स्ट्राइक में सर्वाइवल रेट और बढ़ जाता है, क्योंकि साइलो गहरे और संरक्षित होते हैं।
रिपोर्ट के अन्य प्रमुख बिंदु
- न्यूक्लियर स्टॉकपाइल: 2024 में “लो 600s” (600 से कम) वारहेड्स, लेकिन उत्पादन दर पिछले वर्षों से धीमी होने के बावजूद 2030 तक 1,000 से अधिक होने का अनुमान। यह वृद्धि चीन को अमेरिका और रूस के करीब ला रही है।
- आर्म्स कंट्रोल: चीन आर्म्स कंट्रोल या न्यूक्लियर डिसआर्ममेंट बातचीत में कोई रुचि नहीं दिखा रहा। रिपोर्ट कहती है, “बीजिंग से ऐसे उपायों या व्यापक आर्म्स कंट्रोल चर्चा के लिए कोई इच्छा नहीं दिख रही।”
- ताइवान और रीजनल थ्रेट: चीन 2027 तक ताइवान पर “फाइट एंड विन” करने की क्षमता विकसित कर रहा है। लंबी दूरी की स्ट्राइक्स से एशिया-पैसिफिक में अमेरिकी मौजूदगी को चुनौती दे सकता है।
- अन्य चुनौतियां: चीनी डिफेंस इंडस्ट्री में भ्रष्टाचार जांचें चल रही हैं, जिसमें रॉकेट फोर्स और न्यूक्लियर सेक्टर शामिल हैं। पिछले 18 महीनों में 26 से अधिक टॉप मैनेजर्स की जांच या बर्खास्तगी हुई, जिससे कॉन्ट्रैक्ट्स में देरी हुई।
चीन की प्रतिक्रिया
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने रिपोर्ट को “हाइप” और “अमेरिकी बहाने” करार दिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका खुद सबसे बड़ा न्यूक्लियर आर्सेनल रखता है और उसे पहले大幅 कटौती करनी चाहिए। चीन अपनी न्यूक्लियर पॉलिसी को “डिफेंसिव”, “नो फर्स्ट यूज” और “मिनिमम डिटरेंस” बताता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए न्यूनतम स्तर पर रखी गई है।
यह विकास वैश्विक स्ट्रैटेजिक बैलेंस को प्रभावित कर रहा है, खासकर अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता, न्यूक्लियर आर्म्स रेस और ताइवान टेंशन के संदर्भ में। रिपोर्ट अभी ड्राफ्ट है और कांग्रेस को सबमिट करने से पहले बदल सकती है, लेकिन यह चीन की मिसाइल और न्यूक्लियर क्षमता में बड़े अपग्रेड का स्पष्ट संकेत है।
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