1964 का रामेश्वरम चक्रवात (जिसे धनुषकोड़ी चक्रवात या रामेश्वरम साइक्लोन भी कहा जाता है) भारत के इतिहास में सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक था। यह तूफान न केवल तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप को तबाह कर गया, बल्कि धनुषकोड़ी शहर को पूरी तरह मिटा दिया और एक चलती ट्रेन को समुद्र में बहा ले गया। इस हादसे में अनुमानित 1,800 से 2,000 लोग मारे गए, जिसमें ट्रेन के सभी यात्री और स्टाफ शामिल थे। यह घटना 22-23 दिसंबर 1964 की रात को हुई, जब 280 किमी/घंटा की रफ्तार वाली हवाओं और 7.6 मीटर (25 फीट) ऊंची स्टॉर्म सर्ज (तूफानी लहरों) ने सब कुछ तबाह कर दिया। आइए, इस घटना की हर एक डिटेल को क्रमबद्ध तरीके से समझते हैं – मौसम विज्ञान से लेकर हादसे के पल-पल की कहानी, प्रत्यक्षदर्शियों के बयान, बाद की स्थिति और सबक तक।
चक्रवात की उत्पत्ति और विकास: मौसम विज्ञान की डिटेल
- शुरुआत: तूफान की जड़ें 15 दिसंबर 1964 को दक्षिण अंडमान सागर में एक कम दबाव के क्षेत्र से शुरू हुईं। यह क्षेत्र एक ट्रॉपिकल वेव (उष्णकटिबंधीय लहर) के साथ इंटरैक्ट करके विकसित हुआ। 18 दिसंबर तक यह एक डिप्रेशन (कम दबाव का क्षेत्र) बन गया।
- तीव्रता बढ़ना: 19 दिसंबर तक यह एक गहरा चक्रवात बन गया। 21 दिसंबर तक यह उत्तर-पश्चिम दिशा में बढ़ते हुए श्रीलंका के उत्तरी हिस्से की ओर मुड़ा। शुरुआती रफ्तार 250-350 मील (400-560 किमी) प्रति दिन थी, लेकिन 22 दिसंबर को श्रीलंका के वावुनिया से गुजरते हुए इसकी हवा की गति 280 किमी/घंटा (174 मील/घंटा) तक पहुंच गई।
- भारत पर असर: 22 दिसंबर की शाम को यह पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) में दाखिल हुआ और रात में रामेश्वरम द्वीप के दक्षिण-पूर्वी किनारे पर धनुषकोड़ी से टकराया। मौसम विभाग ने 15 दिसंबर से ही चेतावनी जारी की थी, लेकिन संचार की कमी के कारण यह प्रभावी नहीं रही।
- मौसमी विशेषताएं: तूफान की आंख (eye) लगभग 40-50 किमी चौड़ी थी। हवाओं की गति 110 किमी/घंटा से शुरू होकर 280 किमी/घंटा तक पहुंची। स्टॉर्म सर्ज (समुद्री लहरें) 7-8 मीटर (23-26 फीट) ऊंची थीं, जो सामान्य ज्वार से कहीं ज्यादा थीं। यह तूफान उत्तर-पूर्व मानसून के दौरान आया, जो दक्षिण भारत में दुर्लभ लेकिन विनाशकारी होता है।
इस तूफान की तुलना में आज के चक्रवातों (जैसे मिचौंग या फानी) में बेहतर पूर्वानुमान और अलर्ट सिस्टम हैं, लेकिन 1964 में तकनीक की कमी ने तबाही को बढ़ाया।
धनुषकोड़ी शहर का वर्णन: हादसे से पहले की जिंदगी
धनुषकोड़ी रामेश्वरम द्वीप के दक्षिण-पूर्वी सिरे पर स्थित एक छोटा लेकिन समृद्ध शहर था। यह भारत और श्रीलंका (तब सीलोन) के बीच महत्वपूर्ण ट्रांजिट पॉइंट था। यहां की आबादी लगभग 500-1,000 थी, लेकिन व्यस्त समय में ज्यादा लोग होते थे।
- संरचना: शहर में रेलवे स्टेशन, पोस्ट ऑफिस, टेलीग्राफ ऑफिस, कस्टम्स ऑफिस, दो मेडिकल संस्थान, एक रेलवे हॉस्पिटल, पंचायत यूनियन डिस्पेंसरी, एक हायर एलीमेंट्री स्कूल, पोर्ट ऑफिस, चर्च, मंदिर और स्कूल थे। 1 मार्च 1914 से यहां पोर्ट काम कर रहा था, जहां से इंडो-सीलोन बोट मेल सर्विस (फेरी) चलती थी, जो तलाईमन्नार (श्रीलंका) को जोड़ती थी।
- रेल कनेक्शन: मंडपम से पंबन ब्रिज पार करके रामेश्वरम रोड स्टेशन, फिर धनुषकोड़ी तक रेल लाइन थी। ‘बोट मेल’ ट्रेन चेन्नई से चलकर यहां पहुंचती थी, जहां से यात्री फेरी से श्रीलंका जाते थे।
- आर्थिक महत्व: मछली पकड़ना, व्यापार और तीर्थयात्रा मुख्य थे। शहर बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के संगम पर था, जो इसे खूबसूरत लेकिन जोखिम भरा बनाता था।

(धनुषकोड़ी की तबाही की एक पुरानी तस्वीर, जिसमें खंडहर दिख रहे हैं।)
ट्रेन हादसे की पल-पल की कहानी: ट्रेन नंबर 653 का अंत
ट्रेन नंबर 653 (पंबन-धनुषकोड़ी पैसेंजर) रोजाना की तरह 22 दिसंबर 1964 को रात 11:55 बजे पंबन स्टेशन से धनुषकोड़ी के लिए रवाना हुई। यह ट्रेन का आखिरी रन था।
- ट्रेन की डिटेल: इंजन + 6 कोच। आधिकारिक रूप से 110 यात्री और 5 रेलवे स्टाफ (ड्राइवर, गार्ड, आदि) सवार थे। लेकिन टिकटलेस यात्रियों की वजह से कुल 150-200 लोग होने का अनुमान है। ट्रेन रामेश्वरम रोड स्टेशन से गुजरी, जहां स्टेशन मास्टर ने चेतावनी देने की कोशिश की, लेकिन सिग्नल फेल हो चुके थे।
- पंबन ब्रिज पार करना: ट्रेन ने पंबन ब्रिज (भारत का पहला समुद्री पुल, 1914 में बना) को पार किया। ब्रिज इंस्पेक्टर ने रेत हटाकर ट्रेन को गाइड किया। रात 11 बजे से बारिश तेज हो गई थी।
- हादसे का पल: धनुषकोड़ी स्टेशन से करीब 800 मीटर दूर, सिग्नल फेल होने पर ड्राइवर ने ट्रेन रोकी। अंधेरा था, कोई सिग्नल नहीं मिला। ड्राइवर ने लंबी सीटी बजाई और धीरे-धीरे आगे बढ़ने का फैसला किया। तभी मध्यरात्रि (23 दिसंबर की शुरुआत) में 25 फीट ऊंची विशाल लहरें उठीं और पूरी ट्रेन को उठाकर समुद्र में बहा ले गईं। ट्रेन उलट गई, सभी कोच पानी में डूब गए। कोई जिंदा नहीं बचा।
- खोज: अगली सुबह, सिर्फ इंजन की चिमनी पानी से बाहर दिखी। रेलवे की रिपोर्ट के मुताबिक, स्टाफ ने ट्रेन को रामेश्वरम रोड लौटने वाला समझा था। हादसे की खबर 48 घंटे बाद बाहर आई, क्योंकि संचार टूट चुका था।

(ट्रेन हादसे की स्मृति में एक चित्रण, जिसमें समुद्र में डूबी ट्रेन दिखाई गई है।)
प्रत्यक्षदर्शी और सर्वाइवर्स के बयान
- ब्रिज इंस्पेक्टर: दो रेलवे कर्मचारी (एक विंचमैन और ब्रिज इंस्पेक्टर) पेट्रोल ड्यूटी पर थे। उन्होंने 12 घंटे तक पंबन ब्रिज के फ्रेम से चिपककर जान बचाई।
- एम.एम. राजेंद्रन (तत्कालीन रामनाथपुरम कलेक्टर): मदुरै से 160 किमी दूर थे। 23 दिसंबर सुबह पुलिस वायरलेस से खबर मिली। उन्होंने कहा, “धनुषकोड़ी पूरी तरह मिट गया। कम से कम 1,500-2,000 लोग मारे गए।”
- के. महालिंगम (उस समय 14 साल के): धनुषकोड़ी के निवासी। याद करते हुए कहा, “शहर व्यस्त था। छुट्टियों की वजह से कई सरकारी कर्मचारी बाहर थे, वरना मौतें ज्यादा होतीं। 2004 के सुनामी में भी समुद्र पीछे हटा था, पुरानी इमारतें दिखीं।”
- अन्य: रामनाथस्वामी मंदिर में हजारों लोगों ने शरण ली। मछुआरों के परिवार आज भी वहां रहते हैं, लेकिन शहर कभी नहीं बसा।

(पंबन ब्रिज की क्षतिग्रस्त तस्वीर, जो हादसे के बाद ली गई।)
बाद की स्थिति और प्रभाव
- तबाही का दायरा: धनुषकोड़ी पूरी तरह डूब गया। रेल ट्रैक मुड़ गए, इमारतें खंडहर बन गईं। पंबन ब्रिज क्षतिग्रस्त हुआ लेकिन 1965 में मरम्मत हुआ। धनुषकोड़ी रेल लाइन कभी बहाल नहीं हुई।
- मौतें: धनुषकोड़ी में अकेले 800 मौतें। कुल 1,800-2,000। ट्रेन में 115-200।
- संचार और राहत: खबर 2-3 दिन बाद पहुंची। द हिंदू अखबार ने 25 दिसंबर को रिपोर्ट की। 3,000 लोग फंसे थे। रामनाथस्वामी मंदिर ने शरण दी।
- लंबे समय का प्रभाव: धनुषकोड़ी “घोस्ट टाउन” बन गया। 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9.5 किमी सड़क खोली। आज पर्यटन स्थल है, जहां खंडहर (चर्च, स्टेशन अवशेष) देखे जाते हैं। मछुआरे सीप बेचते हैं।
- सबक: पूर्व चेतावनी सिस्टम की कमी उजागर हुई। आज ISRO और IMD के सैटेलाइट से बेहतर पूर्वानुमान है। जलवायु परिवर्तन से ऐसे तूफान बढ़ सकते हैं।

(धनुषकोड़ी के खंडहरों की एक भूतिया तस्वीर।)
यह घटना आज भी प्रकृति की शक्ति की याद दिलाती है। 2025 में 61 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन धनुषकोड़ी की स्मृतियां अमिट हैं।
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