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नैमिषारण्य धाम

नैमिषारण्य धाम (Naimisharanya Dham)

Naimisharanya Dham

नैमिषारण्य धाम (Naimisharanya Dham) को चक्र तीर्थ (Chakra Tirtha) के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित सीतापुर जिले में गोमती नदी के बाएं किनारे पर नैमिषारण्य धाम स्थित है। यह धाम बहुत ही प्रसिद्ध है। प्राचीनतम पुराणों में से एक मार्कण्डेय पुराण (Markandeya Puran) में कई बार इस धाम का ज़िक्र किया गया है। यह एक दर्शनीय स्थल भी है।

इतिहास और मान्यताएँ (History and Beliefs)

कहा जाता है कि महर्षि शौनक की अभिलाषा थी कि वह ज्ञान का एक दीर्घकालीन सत्र संचालित करें। तब भगवान विष्णु ने उनकें तप से प्रसन्न होकर उन्हें एक चक्र प्रदान किया और कहा कि इस चक्र को चलाते हुए चलना और जिस स्थान पर इस चक्र की नेमि (परिधि) नीचे गिर जाए तो इसका अर्थ यह है कि वह स्थान पावन, शुद्ध तथा पवित्र है।

जब महर्षि शौनक (Maharishi Shaunak) वहाँ से चक्र को चलाते हुए चले तब उनके साथ 80 हजार ऋषि भी चल पड़े। जब वे सभी उस चक्र का अनुसरण करने लगे। चलते-चलते अचानक चक्र की नेमि गोमती नदी के किनारे एक वन मे गिर गई और भूमि में प्रविष्ट हो गई। जिससे चक्र की नेमि गिरने के कारण वह क्षेत्र नैमिष कहलाने लगा। इसलिए इस स्थान को नैमिषारण्य भी कहा गया है।

दर्शनीय स्थल (Naimisharanya Dham Attractions)

इस धाम में चारों धाम मंदिर (पहला आश्रम), पंच प्रयाग सरोवर, व्यास गद्दी, ललिता देवी मंदिर, मनु-सतरूपा तपोभूमि और हनुमान गढ़ी, व्यास-शुकदेव के स्थान, चक्रतीर्थ, दशाश्वमेध टीला, बालाजी मंदिर, पाण्डव किला, त्रिशक्ति धाम, हत्या हरण तीर्थ, कालिका देवी, सूतजी का स्थान, काली पीठ प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

परिक्रमा (Circumambulation of Naimisharanya)

नैमिषारण्य धाम की परिक्रमा 84 कोस की है। यह परिक्रमा हर साल फाल्गुनमास की अमावस्या के बाद की प्रतिपदा को शुरू होकर पूर्णिमा को समाप्त होती है। इस परिक्रमा परंपरा के अनुसार महंत (डंका वाले बाबा) की अध्यक्षता में पहला आश्रम पूरा होता है। वर्तमान में 84 कोसी परिक्रमा अध्यक्ष हैं और पहले आश्रम के महंत 1008 श्री (भरतदास) जी महाराज हैं, जब उनके द्वारा डंका बजाया जाता है, तो रामदल परिक्रमा शुरू होती है।

यहाँ सभी तीर्थ नैमिषारण्य के छोटे (अंतर्वेदी) में आते हैं। यहां के प्रमुख तीर्थ –

पंचप्रयाग – यह मज़बूत, शक्तिशाली तथा दृढ़ सरोवर है और इसके तट पर अक्षयवट नाम का वृक्ष हैं।

व्यासजी और शुकदेव जी के स्थान – यहाँ पर एक मंदिर में अंदर शुकदेवजी और बाहर में व्यासजी की गद्दी है और उन्हीं के समीप मनु और शतरूपा के चबूतरे हैं। इनके साथ सूखा सरोवर रेत से भरा, ब्रह्मावर्त- सूखा सरोवर, गंगोत्री, पुष्कर-सरोवर है।

पाण्डव किला – नैमिषारण्य धाम में हनुमान गढ़ी के पास उपस्थित, पांडव किला एक बहुत ही प्राचीन किला है। यह महाभारत समय से अस्तित्व में है। यह धाम उत्तर प्रदेश के सबसे विख्यात प्राचीनतम स्थलों में आता है। कहा जा जाता है कि इस किले को महाभारत के राजा विराट ने बनवाया था। इतना ही नहीं, यह भी कहा जाता है कि पांडवों ने वनवास के समय इस किले का उपयोग घर के रूप में किया। तभी यह किला पांडव किले के नाम से प्रसिद्ध है। इस किले के भीतर भगवान श्री कृष्ण और पांडवों की मूर्तियां है।

ललिता देवी मंदिर – यह इस धाम का मुख्य मंदिर है। साथ ही पक्का सरोवर पर गोवर्धन महादेव, क्षेमकाया देवी, जानकी कुंड, हनुमानजी और काशी का मंदिर है। इसके साथ ही माँ अन्नपूर्णा, धर्मराज मंदिर और विश्वनाथजी का मंदिर हैं। यहाँ पिंडदान भी किया जाता है।

दशाश्वमेध टीला – यहाँ इस नैमिषारण्य धाम में एक टीले पर मंदिर में भगवान श्री कृष्ण और पांडवों की मूर्तियां उपस्थित हैं।

सूत जी का स्थान – सूतजी की गद्दी भी एक मंदिर में स्थित है। यहाँ राधा-कृष्ण तथा बलरामजी की मूर्तियां भी बनाई गई हैं।

इस धाम में स्वामी श्री नारदानंदजी महाराज का एक आश्रम और एक ब्रह्मचर्य आश्रम भी है। जहां ब्रह्मचारियों को प्राचीन पद्धति से शिक्षा मिलती है। साधक साधना की दृष्टि से आश्रम में रहते हैं । मान्यता है कि कलियुग में सभी तीर्थ नैमिष क्षेत्र में निवास करते हैं।

यहाँ पर त्रि शक्ति मंदिर भी है। जिसमें दक्षिण भारत की कलाकृति मौजूद है।

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