Kedarnath Dham Yatra
केदारनाथ मंदिर एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य में रुद्रप्रयाग जिले (गढ़वाल हिमालय पर्वतमाला) में स्थित है। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड में सबसे लोकप्रिय और सबसे विशाल शिव मंदिर में से एक है। केदारनाथ मंदिर का निर्माण कटे हुए पत्थरों के बड़े शिलाखंडों को मिला कर किया गया है।
केदारनाथ धाम का इतिहास (History of Kedarnath Dham)
उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल है। केदारनाथ धाम चार धाम और पंच केदार में से एक है। महातपस्वी नर और ऋषि-मुनि हिमालय के केदार पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या करते थे। भगवान शिव उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उनकी प्रार्थना के पश्च्यात ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा के लिए केदार पर्वत पर रुकने का आश्वासन दिया। केदारनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण मूल रूप से पांडवों ने किया था, पर यह भी माना जाता है कि वर्तमान केदारनाथ मंदिर आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था, जिन्होंने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
केदारनाथ मंदिर में बैल की पीठ के रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है। तुंगनाथ में भगवान शिव की भुजाएँ, मदमदेश्वर में नाभि, रुद्रनाथ में मुख और कल्पेश्वर में भगवान शिव की जटा प्रकट हुए थी। इसलिए इन चार पवित्र स्थानों के साथ श्री केदारनाथ धाम को “पंचकेदार” कहा जाता है।
हिमयुग (Ice Age)
केदारनाथ मंदिर लगभग 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा। परंतु जब यह मंदिर बर्फ से बाहर निकला तो पूर्णत: सुरक्षित था। देहरादून में स्तिथ वाडिया इंस्टीट्यूट के प्रसिद्ध हिमालयन जियोलॉजिकल वैज्ञानिक (विजय जोशी) के अनुसार 13वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी (लगभग 400 साल) तक एक छोटा हिमयुग आया था, जिसमें हिमालय का एक बड़ा भाग बर्फ के अंदर दब गया था, जिसमे यह मंदिर क्षेत्र भी था।
मंदिर की दीवार और पत्थरों पर आज भी इस हिमयुग के निशान देखे जा सकते हैं। केदारनाथ मंदिर का यह इलाका चोराबरी ग्लैशियर का एक हिस्सा है। वैज्ञानिकों का यह कहना है कि ग्लैशियरों के इस प्रकार लगातार पिघलते रहने से और चट्टानों के खिसकते रहने से आगे भी इस तरह के जलप्रलय या अन्य प्राकृतिक आपदाएं आ सकती है।
मंदिर का वास्तुशिल्प (Temple Architecture)
केदारनाथ के मन्दिर का निर्माण एक छह फीट ऊँचे चौकोर चबूतरे पर किया गया है। मन्दिर के बाहर प्रांगण में नन्दी बैल भगवान शिव के वाहन के रूप में विराजमान हैं। केदारनाथ मन्दिर को मुख्य तीन भागों में बांटा जा सकता है।
1.गर्भ गृह 2.मध्यभाग 3.सभा मण्डप
गर्भ गृह के मध्य भाग में श्री केदारेश्वर जी भगवान का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है, जिसके अग्रिम भाग पर भगवान गणेश जी की आकृति के साथ माँ पार्वती जी का श्री यंत्र विद्यमान है। ज्योतिर्लिंग पर एक प्राकृतिक यगयोपवित और पिछले भाग पर प्राकृतिक स्फटिक की माला को देखा जा सकता है। इसमें एक नव लिंगाकार विग्रह विधमान है, इसी वज़ह से इस ज्योतिर्लिंग को नव लिंग केदार के नाम से भी जाना जाता है। इसके चारों ओर चार विशालकाय स्तंभ विद्यमान है, जिनको चारों वेदों का धोतक भी माना जाता है। स्तंभों पर एक विशाल कमलनुमा छत टिकी हुई है। गर्भ गृह की दीवारों को कलाकृतियों और सुन्दर आकर्षक फूलों को उकेर कर सजाया गया है । गर्भ गृह के चारों खंभों के पीछे से केदारेश्वर भगवान की परिक्रमा की जाती है।
भगवान केदारनाथ की पूजा (Worship of Lord Kedarnath)
प्रात:काल में शिव-पिण्ड का स्नान प्राकृतिक रूप से कराकर, शिव-पिण्ड पर घी-लेपन किया जाता है। इसके पश्च्यात धूप-दीप जलाकर शिव-पिण्ड की आरती की जाती है। आरती के समय यात्री-गण मंदिर में प्रवेश कर सकते है व पूजन कर सकते हैं। संध्या के समय भगवान केदारनाथ का श्रृंगार किया जाता है। उन्हें विभिन्न प्रकार के चित्त-आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। इस समय भक्तगण दूर से केवल केदारनाथ का दर्शन ही कर सकते हैं।
भगवान केदारनाथ के दर्शन का समय (Lord Kedarnath Darshan Timings)
- भगवान केदारनाथ जी का मन्दिर प्रात: 6:00 बजे दर्शनार्थियों के लिए खुलता है।
- दोपहर के भगवान केदारनाथ की विशेष पूजा होती है और उसके बाद भगवान विश्राम के लिए मन्दिर को बन्द कर दिया जाता है।
- शाम को 5 बजे जनता के दर्शन हेतु मन्दिर को पुन: खोला जाता है।
- भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करने के पश्च्यात 7:30 बजे से 8:30 बजे तक नियमित संध्या आरती होती है।
- रात्रि 8:30 बजे भगवान केदारनाथ के मन्दिर को बन्द कर दिया जाता है।
सर्दियों में केदारघाटी बर्फ़ से पूरी तरह ढँक जाती है। यद्यपि मन्दिर के खोलने और मन्दिर को बन्द करने का मुहूर्त निकाला जाता है। सामान्यत: मन्दिर नवम्बर माह की 15 तारीख से पहले (वृश्चिक संक्रान्ति से दो दिन पहले) बन्द हो जाता है और 6 माह अर्थात वैशाखी (13-14 अप्रैल) के पश्च्यात कपाट खुलते है। इस समय केदारनाथ की प्रतिमा को उखीमठ में लाया जाता हैं।
केदारनाथ धाम पहुँचने का मार्ग (Way to reach Kedarnath Dham)
केदारनाथ धाम पहुँचने के लिये आप हरिद्वार के मार्ग से या फिर ऋषिकेश वाले मार्ग से भी आ सकते है।
श्री केदारनाथ धाम तक पहुँचने के लिए आपको हरिद्वार से सड़क मार्ग के माध्यम से गौरीकुंड तक जा सकतें हैं। हरिद्वार से गौरीकुंड तक की दुरी लगभग 230 किलोमीटर की है। परंतु यह सड़क मार्ग रात्रि के समय बंद रहता है।
गौरीकुंड से केदारनाथ मंदिर की दुरी लगभग 16 किलोमीटर की है। यह दुरी आप पैदल, घोड़े-खच्चर या फिर पालकी के द्वारा तय कर सकते है। यह रास्ता बहुत मनमोहक है। आप इन खुबसूरत प्राकृतिक नजारों को देखते हुए केदारनाथ मंदिर पहुँच जाते हैं।
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